" यही मंदिर , यही मस्जिद , यही तख्ते मुहम्मद हैं

चले आओ 'बेदिल' यही वादी-ए-जन्नत है "

तुम भी परेशां हम भी परेशान दिल्ली में

>> सोमवार, 23 नवंबर 2009

तुम भी परेशां हम भी परेशान दिल्ली में
हम दो ही तो दुखी है इन्सान दिल्ली में

किसी भूके को यहाँ कोई रोटी नहीं देता
दिल छोटे और बड़े है मकान दिल्ली में

रिश्ता बनता नहीं की टूट जाता है पहले
इश्क हो या दोस्ती कुछ नहीं आसान दिल्ली में

आते आते आया ख्याल ये भी तोबा की
मौत है महँगी सस्ती है जान दिल्ली में

यु तो हादसे हर रात होते है बेदिल मगर
बचते नहीं सुबह उनके निशान दिल्ली में

______________________________________

TUm Bhi Preshaan Ham Bhi Preshaan Delhi Me
Ham Do Hi To Dukhi Hai Insaan Delhi Me

Kisi Bhukhe Ko Yaha Koi Roti Nahi Deta
Dil Chote Or Bade Hai Makaan Delhi Me

Rishta Banta Nahi Ki Toot Jata Hai Pahle
Ishq Ho Yaa Dosti Kuch Nahi Asaan Delhi Me

Aate Aate Aaya Khayaal Ye Bhi Toba Ki
Mout Hai Mahngi Sasti Hai Jaan Delhi Me

Yu to Haadse Har Raat HOte Hai "bedil" Magar
Bachte Nahi Subha Unke Nishaan Delhi Me


Deepak "bedil"

इश्क में आशिक जलते है आज कल तो

>> शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

इश्क में आशिक जलते है आज कल तो
कुचे-कुचे में ये मिलते है आज कल तो

अब जो ये फूल है पहले जैसे नहीं रहे
गली-किनारे में खिलते है आज कल तो

आशिको को रु-शिनास तुमसे क्या करे
हुजुर घर बेठे ही पलते है आज कल तो

क्या शिकवा है उन्हें या खता हमसे हुई
वो दूर-दूर हम से चलते है आज कल तो

रोते-रोते रात में सोए है मिया "बेदिल"
क्या ग़म है नहीं कहते है आज कल तो

(Hinglish)



Ishq me Aashik Jalte Hai Aaj Kal to
Kuche - kuche me ye Milte hai Aaj Kal To

Ab Jo ye Phool Hai Pahle Jese Nahi Rahe
Gali - Kinaare Me Khilte Hai Aaj Kal To

Aashiko ko Ruu-Shinaas Tumse kya Kare
hujur Ghar Bethe Hi Palte Hai Aaj Kal To

Kya Shikwa Hai Unhe Yaa KHata Ham Se Hui
Wo Dur-Dur Ham Se Chalte Hai Aaj Kal to

Rote - Rote Raat Me Soye Hai Miya "Bedil"
Kya Gam Hai Nahi Kahte Hai Aaj Kal To


Deepak "bedil"...

कल उनसे मुलाकात होनी है

>> रविवार, 30 अगस्त 2009

--->> "Hindi" <<---
आज-कल में उनसे मुलाकात होनी है
उनकी मोहोबत में दिन से रात होनी है

खुशिया दिलो की छः से सात होनी है
जब मुस्कुराकर बातो पर बात होनी है

बाहों में लेने का बहाना भी मिल जाए
गर् कड़के बिजली लगे बरसात होनी है

उनका हुस्न, उनके चहरे की मासूमियत
नाज-ओ-नखरे,तबाह कायेनात होनी है

दिल आवारा बंजारा पगला भी "बेदिल"
चंद अल्फाजो में उनकी क्या बात होनी है

Deepak "bedil"....

__________________________________________________________

-->> " Hinglish " <<--
Aaj Kal Me Unse Mulakaat Honi Hai
Unki Mohobat Me Din Se Raat Honi Hai

Khushiya Dilo Ki Che se Saat Honi Hai
Jab Muskuraa'kar Baato Par Baat Honi Hai

Baaho Me Lene Ka Bahaana Bhi Mil Jaaye
Gar Kadke Beej'li Lage Barsaat Honi hai

Unka Husan, Unke Chahre ki Masumiyat
Naaj-o-Nakhre, Tabaah Kaayenaat honi hai

Dil Awaara, Banjaara, Pagla Bhi "Bedil"
Chan'nd Alfaajo Me Unki Kya Baat Honi Hai

Deepak "bedil"

नोट - एजाज-ऐ-बेदिल में पहली बार हिन्दी के साथ आज कल की इन्टरनेट की भाषा हिंगलिश का भी पर्योग किया जा रहा है अपने उन साथियो के लिए जो ग़ज़ल को हिन्दी में नही पड़ सकते .

मेरी इन गज़लों को उठा कर फेकना

>> शनिवार, 13 जून 2009

मेरी इन गज़लों को उठा कर संभाल कर फेकना
महफ़िल-ए-यार में ना दिल उछाल कर फेकना

इश्क-ओ- आबरू-ओ- शर्म-ओ- हया गजब है
नफरत को ए साहब दिल से निकाल कर फेकना

हस्ती जबतलक इस मैदान-ए-गुलसिता में मेरी
रहगी फिदरत यारो इश्क को बेहाल कर फेकना

ये हुआ की जाट साहब सिर्फ चंद बाते कह पाए
की यारो को मोहोबत में माला-माल कर फेकना

"बेदिल" के कारनामे दिल्ली में मशहूर हो चले है
मुझे दिल से फेकना दोस्त मगर ख्याल कर फेकना

14-06-2009......03:30 am

तेरी उन महकती यादों को भुलाया ना जायेगा

>> रविवार, 31 मई 2009

तेरी उन महकती यादों को भुलाया ना जायेगा
अश्क जो गिर चुके उन्हें नजरो में लाया ना जायेगा

थे हम ही नादान दिल वाले बशर महफ़िल में
हमारे जैसा आशिक अब दिल्ली में पाया ना जायेगा

तेरा इश्क कैसा है मेरा इश्क कैसा है बहुत सवाल है तेरे
महफ़िल-ए-यार में चीर के दिल अब दिखाया ना जायेगा

परे हो जायेगे तेरी नजरों से इक मरतबा बोल तो जरा
इस शहर ग़मगीन में अब ताज-ए-महल बनाया ना जायेगा

तुम कहती हो रवानगी ले लो मेरी खुश आबाद जिन्द्कानी से
गर निकला तेरे शहर से सच है वापस आया ना जायेगा

ना ही तुने वफ़ा को संभाला ना इश्क ना ही याराने को
दुश्मन ही साथ देंगे दोस्तों मेरा जनाजा तुमसे उठाया ना जायेगा

तू जालिम है तो क्यों ना तुझे तोहमतों का दरिया देता चलू
"बे-दिल" का कत्ल हुआ है कत्ल इस कत्ल को यु छुपाया ना जायेगा



Deepak "bedil"..........08:00 pm......30.5.2009

आशिको का हिसाब ..........ग़ज़ल.

>> सोमवार, 27 अप्रैल 2009

आशिको के शहर में तेरा हिसाब कर दूंगा
देख मेरी तरफ तुझे मै गुलाब कर दूंगा

कुछ पूछ ले दिल खोल कर तू भी कभी
तेरे हर सवाल के सवाल का जवाब कर दूंगा

तेरी जिन्दगी में खुशिया-ही-खुशिया रहेगी सदा
सच कहता हूँ मान जा तुझे लाजवाब कर दूंगा

मुझे मयखाने से कही दूर ले जाकर छोड़ना
वरना शहर के पानी को , मै शराब कर दूंगा

"बेदिल" शराबी, कबाबी, जुआरी , बेकार है
नहीं बुलाया मुझको कहा,महफ़िल खराब कर दूंगा

27-04-2009 (3:30 pm)

चलो बरसो पहले कयामत.......................ग़जल

>> मंगलवार, 7 अप्रैल 2009


चलो बरसो पहले हुई क़यामत को देखते है
खोफजदा रात की दोर--शिकायत को देखते है

मुत्फरिक अशर तो यु है तकरीर हमारी यारो
परदेह में छिपी उसी नफरत को देखते है

वीरान--उजाड़ यहाँ आब--हवा हुई है ऐसी
लुटी हुई जिन्दगी में उस मुहब्बत को देखते है

यु तो ना जाएगे गंज--शहीदान वतन से परे
गाहे - बा - गाहे दुश्मन की जराफत को देखते है

महफ़िल महबूब की होती आब--रवां जैसी अल्हा
इसमें डूब कर "बेदिल" अपनी सूरत को देखते है


शब्द----
1-मुत्फरिक अशर = फूटकर दोहा
2-तकरीर = बात, भाषण
3-गंज--शहीदान = शहीदों के दफन होने वाली जगह
4-जराफत = कला
5-आब--रवां = बहता पानी



दीपक पंवार "बेदिल"

बाजार में अल्हा..............ग़जल

>> सोमवार, 23 मार्च 2009




बाजार में अल्हा एक सिम्त राम बैठा हैं

यकीनन अपना ही लहू बदल नाम बैठा हैं


रफ्ता-रफ्ता इश्क हासिल होगा यारो

कम्बकत काशिद भी लिए पैगाम बैठा हैं


दामन मेरा हुस्न--आशिकी का मोहताज नहीं

बाजार सारा मेरा ही लगाकर दाम बैठा हैं


गुजर रही है ऐसे इम्तिहान-- दोर से जिन्दगी

राहबर की चाह में दिल सुबो-शाम बैठा हैं


मेरा महबूब चांदनी--चाँद है यकीं कारो

गर्दिश-- दोर में भी "बेदिल" लिए इनाम बैठा हैं



22-03-2009 (4:00 pm)

मुझे याद है तुम्हे हँसा कर छोड़ना..........ग़जल

>> बुधवार, 18 मार्च 2009


मुझे याद है तुम्हे हँसा कर छोड़ना
हम भूलते नहीं अपना बना कर छोड़ना


दुःख को हँसी में ही छुपाये रखना
दुनिया का काम तो है तोहमत लगा कर छोड़ना


दिल करे कभी दूर जाने का हमसे
कोशिश रहे साथ बता कर छोड़ना


ना भूल पाऊगा शायद मै तुझे
इन अदाओ से मुझे पागल बना कर छोड़ना


आज चाहे कतरा--खून बह जाए चोखट पर
नहीं आता "बेदिल" को हाथ बढा कर छोड़ना


17-3-09 (4:30pm)

तेरी महफ़िल में हमने आना छोड़ दिया..................ग़जल

>> शुक्रवार, 13 मार्च 2009


तेरी महफ़िल में हमने आना छोड़ दिया


महफ़िल--हिंद में हँस के हँसाना छोड़ दिया



इस गरदिश--आयाम में सावन कहा बाकी


तुने भी हँस कर बुलाना छोड़ दिया



महकते बदन पर नककाशी तेरे गजब की है


फ़ानुज को भी अब तुने जलाना छोड़ दिया



काशिद के इन्तजार में उम्र बीत गई है मेरी


तेरा ख़त आया जब जमाना छोड़ दिया



कयामत की रात में एहतेमाम करुगा मै


"बेदिल" ने करके तुझे बहाना छोड़ दिया.



13-03-2009 (5:00 pm)

होरी खेलन जाऊ...............''बेदिल''

>> गुरुवार, 12 मार्च 2009

***********************************
भीगी , भीगी , भीगी रे चुनरिया मोरी

पकड़ी गई रे चोरी कन्हईया तोरी

जटा जाल महाकाल विकराल

रस गाल मधुबाल ससुराल

आज ना चलन देऊ सीना जोरी

भीगी , भीगी , भीगी रे चुनरिया मोरी

*****************************************
छान, बान, मान करो रसपान

जान,आन बड़ा देहु है दान

फास,सास,मॉस कभी दुःख देहु ना मोई

आख, जाच, राच पढ़े जो माने कोई

जडी जटिल प्रेम की आज पिऊ तोरी

भीगी , भीगी , भीगी रे चुनरिया मोरी
****************************************
आग, राग, फाग, साग आलोकिक गहने

प्रकर्ति प्रेम अनूप है पढ़े तो लगे महने

रहन, सहन, कहन, सोचो जरा को

उठान सो फायदा नहीं मरा को

गुरु इक्छा ईश्वर है कैसे जाऊ छोरी

भीगी , भीगी , भीगी रे चुनरिया मोरी
***************************************
काम, क्रोध, मद, लोभ, ना देखे ईश्वर कोई

जात, आत, मात, रात, कभी ना भूले कोई

"मान" गुरु सौदंर्य सम्पूर्ण सुलेखा

"बेदिल" चाँद-चादनी कबहु ना भुलेखा

होरी रात भेदी इहु चोरी

भीगी , भीगी , भीगी रे चुनरिया मोरी
*******************************************
10-03-2009 (7:30pm)

पंजाबी ग़जल--"कलेया दा साडा जी नी लगदा"--

>> मंगलवार, 10 मार्च 2009

पंजाबी ग़जल


कलेया दा साडा जी नी लगदा


धिरदे बददल मैणु मिह नी लगदा



परदेस जदों आये आपा मित्रा नाल

मापया दे हथा दा स्वाद अत्थो सी नी लगदा


गंडे ते खेता विचो खेल खेलया असी

इतथो रोटिया दी गिनती शरीर विचो घी नी लगदा


साडा वतन प्यारा छडिया ना ज्योंदा

पता नी मैणु इत्थे जी की नी लगदा


हासया-हासया विचो पराया तो आन बैठा

आन्दे ने हन्जू साडा रब हसी नी लगदा


सोणिया नाल वादे सारे तोड़ ओंदा सी

जदों खुश होन्दे असी तदो रबा साडा खुसी नी लगदा


की लिखया असी पंजाबी नाल अथो ना कोई

मान सी साडा पर "बेदिल" मसिह नी लगदा




10-03-2009 (6:25 pm)

(होली का बदलता रूप).. होली पर आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाये.

सभी पाठको को मेरा नमस्कार ..अगर आप मुझसे मेरे ब्लॉग पर जुड़ना चाहते है तो बाए हाथ में एक जगह लिखा होगा "अनुसरण करे" वहा क्लिक करे और वहा अपनी I D चुने जिसमे आपका खाता है जैसे google में है तो वहा google के बटन पर क्लिक करे या yahoo पर है तो yahoo पर क्लिक करे अब दोस्ती करना कोई मुश्किल काम नही..धन्यवाद मेरी रचनाये तथा कुछ समय मेरे ब्लॉग को देने के लिए ...


आज का विषय है हमारे देश तथा आज-कल विदेशो में भी परचलित होने वाला वो त्यौहार है जो अब अपना रंग अपनीछटा खोता जा रहा है . और ये कोई अतिशोक्ति नहीं होगी की कुछ एक बरसो के भीतर ही होली जैसा त्यौहार नष्ट होजायेगा या उसके रंगों में रोनक की वो चकाचोंद दूर तक नजर दोडाने पर भी नजर नहीं आएगी. आज ये होली का पर्व है , ये रंगों का पर्व है , ये मिठाईयो का पर्व है , कही जगह ये भांग का भी पर्व है ...पर अब ये मज़ा नहीं रह गया है देश मेंआधुनिकरण की जो हवा चल रही है वो दीपावली , होली , दशहेरा , जैसे त्योहारों से कही आगे है कही रोचक है अब होलीएक बहाना सा रह गया है केवल लोगो की छुटी का आराम का , होली केवल आज उन दस साल के बालक का खेल है जोकेवल बच्चे ही खेल सकते है बड़े नहीं , वो भी शारीर में जब तक जान होती है खेलते है और माँ के बने पकवान खाकर कलविद्यालय के बारे में सोचने लगते है , आधुनिकरण और शहरीकरण ने हमारी सभ्यता हमारी संस्किर्ति सब चूर-चूर करदी हैदिल्ली शहर में जहा होली से एक मास पहले से ही रंगों का महफिलों का रंगमंचो का ताता लगा रहता था आज वहीदिल्ली शहर होली से महीना पहले तो क्या होली वाले दिन भी महफिलों का रंगमंचो का निर्माण तो छोडिये एक दुसरे कोरंग लगाने तक का इरादा तक नहीं करते केवल अवकास का आनंद लेते है ये ना दिमाग में ना लाईयेगा की और कही हालठीक है मुंबई , कलकत्ता , जैसे बड़े शहरो में भी ये ही हाल है ...


वैसे कुछ कुछ परदेशो ने हमारी और हमारे देश की लाज बचाई हुई है जैसे हमारी सास्कर्तिक राजधानी "वाराणशी" में रंगोंका जमावडा आज भी वैसा ही है जैसा पुराने समय में था हां फिर भी कुछ कमी तो आई ही है .आज के दिन वहा भंग पिनेका परच्लन पता नहीं कब से है.

होली त्यौहार यु तो कहते है दुश्मनी को दूर करके दिलो को जोड़ने का त्यौहार है पर अब ये बाते केवल किताबी हो गयी है , मुझे आज भी याद है , शयद आपको भी याद होगा होली से पहले होली दहन को जब घर की ओरते पूजन विधि के लिएतर्यार होती है कैसे छोटे -छोटे बच्चे गले में एक मीठी तोफियो और बिस्कुट के छोटे-छोटे टुकड़े वाली माला पहने अपनी माँके सन्ग चलते जाते है पूजन के बाद वो उन मालाओ को खाते हुए आते है और अगले दिन होली यानी धुलेंडी , धुलेटी , याआधुनिक नाम "रंग" खेला जाता है .
...



रंगों को देख जरा क्या सुंदर समां फेला है
हसीं गुलजार जन्नत रंगीन सारा अहला है
नफरत को प्यार में बदले इसमें कुछ तो बात है
भिगोया "बेदिल" दामन आज भी मैला है

आज हुआ ए कलम प्यार मुझे (ग़जल)

>> रविवार, 8 मार्च 2009

आज हुआ कलम प्यार मुझे

हो सके तो दे दुआ यार मुझे


ख़ुशी ही ख़ुशी का समां है चारो तरफ

तू दे सके तो दे मार मुझे


मंजिल--मकानात में पहुच कर जब देखेगा

टंगा होगा आइने पर हार मुझे


राह--इश्क में मर कर रह जाऊगा

असल में होगा इश्क का बुखार मुझे


ग़मो के दरिया में डूब कर निकला हूँ

जब ही पड़ा "बेदिल" नाम यार मुझे...




8-03-2009(1:20am)

मुकरिया

>> शुक्रवार, 6 मार्च 2009

()

दिल मेरे अलख जगाते ! शाम होते मुझे बेठा पाते !

बेदिलचर्चा दिल से जाती ! खाली पड़ा ये बिना बाती !

क्यु सखी ये पिया ? ना सखी ये दिया !


()

हरा रंग मुझे भाता ! लाल सफ़ेद में भी पाता !

बेदिलचर्चा मिश्री घोले ! कुछ-कुछ शब्द मुख से बोले !

सुंदर चितवन मुझे मोहता ! क्या आशिक ? ना सखी तोता !


()

जमीन अंदर घर बनाए ! कोई इसका भेद ना पाए !

बेदिलये सफ़ेद और काला ! मुँह खोले जहर का प्याला !

इसका जिगर ना कोई पाप ! सखी बैरी ? ना सखी साँप !


()

जगह-जगह ये पाते ! देश-देश नाम बदल जाते !

बेदिलसुख में याद ना करता ! दुःख में इसके चरणों पड़ता !

अरे ये केसा अचरज भाई ! बोलो कोन ? दोस्त ये तो साईं !


()

यारो लम्बा कद इसका ! रेत में चले तूफ़ान जिसका !

बेदिलइसकी बड़ी है शान ! राजिस्थान में बहुत महान !

पानी पीता लम्बी घुट ! क्यु यार आशिक ? नही यार ऊठ !


()

दो तरह के दात है ! दातो से दुश्मन की मात है !

बेदिलशरीर मोटा बड़े है दात ! शर्मीला इसकी कोई नही जात !

मोटा-ताजा सबका सच्चा साथी ! सखी साजन ? ना सखी हाथी !

चिट्ठाजगत

Sahitya Shilpi
रफ़्तार
http://www.chitthajagat.in/?ping=http://ajaaj-a-bedil.blogspot.com/

घनिष्ट मित्र का तोफा

तोहमतें कई मेरे पीछे मुझपे लगाता है वो
खुलकर बात करने में मग़र शरमाता है वो

कभी सिखाया करता था भले-बुरे का भेद जो
आज खुद ही बुराई का शहंशाह कहलाता है वो

फाँस भी कोई अगर उसे कभी चुभ जाती थी
रोता था मेरे पहलू में, आज मुझे रुलाता है वो

मसलसल जलता रहा लौ बनके जिसके लिए
देखकर कर भी घाव मेरे पीठ दिखाता है वो

पढ़-पढ़कर आँखों में ख़्वाब पूरे किए थे जिसके
एक प्यार की हकीकत पे फूल देके बहलाता है वो


--अमित के सागर


अजीब शख्स था कैसा मिजाज़ रखता था
साथ रह कर भी इख्तिलाफ रखता था

मैं क्यों न दाद दूँ उसके फन की
मेरे हर सवाल का पहले से जवाब रखता था

वो तो रौशनियों का बसी था मगर
मेरी अँधेरी नगरी का बड़ा ख्याल रखता था

मोहब्बत तो थी उसे किसी और से शायद
हमसे तो यूँ ही हसी मज़ाक रखता था

--अहमद फराज़
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