" यही मंदिर , यही मस्जिद , यही तख्ते मुहम्मद हैं

चले आओ 'बेदिल' यही वादी-ए-जन्नत है "

इश्क में आशिक जलते है आज कल तो

>> शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

इश्क में आशिक जलते है आज कल तो
कुचे-कुचे में ये मिलते है आज कल तो

अब जो ये फूल है पहले जैसे नहीं रहे
गली-किनारे में खिलते है आज कल तो

आशिको को रु-शिनास तुमसे क्या करे
हुजुर घर बेठे ही पलते है आज कल तो

क्या शिकवा है उन्हें या खता हमसे हुई
वो दूर-दूर हम से चलते है आज कल तो

रोते-रोते रात में सोए है मिया "बेदिल"
क्या ग़म है नहीं कहते है आज कल तो

(Hinglish)



Ishq me Aashik Jalte Hai Aaj Kal to
Kuche - kuche me ye Milte hai Aaj Kal To

Ab Jo ye Phool Hai Pahle Jese Nahi Rahe
Gali - Kinaare Me Khilte Hai Aaj Kal To

Aashiko ko Ruu-Shinaas Tumse kya Kare
hujur Ghar Bethe Hi Palte Hai Aaj Kal To

Kya Shikwa Hai Unhe Yaa KHata Ham Se Hui
Wo Dur-Dur Ham Se Chalte Hai Aaj Kal to

Rote - Rote Raat Me Soye Hai Miya "Bedil"
Kya Gam Hai Nahi Kahte Hai Aaj Kal To


Deepak "bedil"...

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hello

चिट्ठाजगत

Sahitya Shilpi
रफ़्तार
http://www.chitthajagat.in/?ping=http://ajaaj-a-bedil.blogspot.com/

घनिष्ट मित्र का तोफा

तोहमतें कई मेरे पीछे मुझपे लगाता है वो
खुलकर बात करने में मग़र शरमाता है वो

कभी सिखाया करता था भले-बुरे का भेद जो
आज खुद ही बुराई का शहंशाह कहलाता है वो

फाँस भी कोई अगर उसे कभी चुभ जाती थी
रोता था मेरे पहलू में, आज मुझे रुलाता है वो

मसलसल जलता रहा लौ बनके जिसके लिए
देखकर कर भी घाव मेरे पीठ दिखाता है वो

पढ़-पढ़कर आँखों में ख़्वाब पूरे किए थे जिसके
एक प्यार की हकीकत पे फूल देके बहलाता है वो


--अमित के सागर


अजीब शख्स था कैसा मिजाज़ रखता था
साथ रह कर भी इख्तिलाफ रखता था

मैं क्यों न दाद दूँ उसके फन की
मेरे हर सवाल का पहले से जवाब रखता था

वो तो रौशनियों का बसी था मगर
मेरी अँधेरी नगरी का बड़ा ख्याल रखता था

मोहब्बत तो थी उसे किसी और से शायद
हमसे तो यूँ ही हसी मज़ाक रखता था

--अहमद फराज़
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