बाजार में अल्हा..............ग़जल
>> सोमवार, 23 मार्च 2009
बाजार में अल्हा एक सिम्त राम बैठा हैं
यकीनन अपना ही लहू बदल नाम बैठा हैं
रफ्ता-रफ्ता इश्क हासिल होगा यारो
कम्बकत काशिद भी लिए पैगाम बैठा हैं
दामन मेरा हुस्न-ए-आशिकी का मोहताज नहीं
बाजार सारा मेरा ही लगाकर दाम बैठा हैं
गुजर रही है ऐसे इम्तिहान-ए- दोर से जिन्दगी
राहबर की चाह में दिल सुबो-शाम बैठा हैं
मेरा महबूब चांदनी-ए-चाँद है यकीं कारो
गर्दिश-ए- दोर में भी "बेदिल" लिए इनाम बैठा हैं
22-03-2009 (4:00 pm)