मुकरिया
>> शुक्रवार, 6 मार्च 2009
(१)
दिल मेरे अलख जगाते ! शाम होते मुझे बेठा पाते !
“बेदिल” चर्चा दिल से जाती ! खाली पड़ा ये बिना बाती !
क्यु सखी ये पिया ? ना ऐ सखी ये दिया !
(२)
हरा रंग मुझे भाता ! लाल सफ़ेद में भी पाता !
“बेदिल” चर्चा मिश्री घोले ! कुछ-कुछ शब्द मुख से बोले !
सुंदर चितवन मुझे मोहता ! क्या आशिक ? ना सखी तोता !
(३)
जमीन अंदर घर बनाए ! कोई इसका भेद ना पाए !
“बेदिल” ये सफ़ेद और काला ! मुँह खोले जहर का प्याला !
इसका जिगर ना कोई पाप ! ऐ सखी बैरी ? ना सखी साँप !
(४)
जगह-जगह ये पाते ! देश-देश नाम बदल जाते !
“बेदिल” सुख में याद ना करता ! दुःख में इसके चरणों पड़ता !
अरे ये केसा अचरज भाई ! बोलो कोन ? दोस्त ये तो साईं !
(५)
यारो लम्बा कद इसका ! रेत में चले तूफ़ान जिसका !
“बेदिल” इसकी बड़ी है शान ! राजिस्थान में बहुत महान !
पानी पीता लम्बी घुट ! क्यु यार आशिक ? नही यार ऊठ !
(६)
दो तरह के दात है ! दातो से दुश्मन की मात है !
“बेदिल” शरीर मोटा बड़े है दात ! शर्मीला इसकी कोई नही जात !
मोटा-ताजा सबका सच्चा साथी ! ऐ सखी साजन ? ना सखी हाथी !
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