" यही मंदिर , यही मस्जिद , यही तख्ते मुहम्मद हैं

चले आओ 'बेदिल' यही वादी-ए-जन्नत है "

(होली का बदलता रूप).. होली पर आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाये.

>> मंगलवार, 10 मार्च 2009

सभी पाठको को मेरा नमस्कार ..अगर आप मुझसे मेरे ब्लॉग पर जुड़ना चाहते है तो बाए हाथ में एक जगह लिखा होगा "अनुसरण करे" वहा क्लिक करे और वहा अपनी I D चुने जिसमे आपका खाता है जैसे google में है तो वहा google के बटन पर क्लिक करे या yahoo पर है तो yahoo पर क्लिक करे अब दोस्ती करना कोई मुश्किल काम नही..धन्यवाद मेरी रचनाये तथा कुछ समय मेरे ब्लॉग को देने के लिए ...


आज का विषय है हमारे देश तथा आज-कल विदेशो में भी परचलित होने वाला वो त्यौहार है जो अब अपना रंग अपनीछटा खोता जा रहा है . और ये कोई अतिशोक्ति नहीं होगी की कुछ एक बरसो के भीतर ही होली जैसा त्यौहार नष्ट होजायेगा या उसके रंगों में रोनक की वो चकाचोंद दूर तक नजर दोडाने पर भी नजर नहीं आएगी. आज ये होली का पर्व है , ये रंगों का पर्व है , ये मिठाईयो का पर्व है , कही जगह ये भांग का भी पर्व है ...पर अब ये मज़ा नहीं रह गया है देश मेंआधुनिकरण की जो हवा चल रही है वो दीपावली , होली , दशहेरा , जैसे त्योहारों से कही आगे है कही रोचक है अब होलीएक बहाना सा रह गया है केवल लोगो की छुटी का आराम का , होली केवल आज उन दस साल के बालक का खेल है जोकेवल बच्चे ही खेल सकते है बड़े नहीं , वो भी शारीर में जब तक जान होती है खेलते है और माँ के बने पकवान खाकर कलविद्यालय के बारे में सोचने लगते है , आधुनिकरण और शहरीकरण ने हमारी सभ्यता हमारी संस्किर्ति सब चूर-चूर करदी हैदिल्ली शहर में जहा होली से एक मास पहले से ही रंगों का महफिलों का रंगमंचो का ताता लगा रहता था आज वहीदिल्ली शहर होली से महीना पहले तो क्या होली वाले दिन भी महफिलों का रंगमंचो का निर्माण तो छोडिये एक दुसरे कोरंग लगाने तक का इरादा तक नहीं करते केवल अवकास का आनंद लेते है ये ना दिमाग में ना लाईयेगा की और कही हालठीक है मुंबई , कलकत्ता , जैसे बड़े शहरो में भी ये ही हाल है ...


वैसे कुछ कुछ परदेशो ने हमारी और हमारे देश की लाज बचाई हुई है जैसे हमारी सास्कर्तिक राजधानी "वाराणशी" में रंगोंका जमावडा आज भी वैसा ही है जैसा पुराने समय में था हां फिर भी कुछ कमी तो आई ही है .आज के दिन वहा भंग पिनेका परच्लन पता नहीं कब से है.

होली त्यौहार यु तो कहते है दुश्मनी को दूर करके दिलो को जोड़ने का त्यौहार है पर अब ये बाते केवल किताबी हो गयी है , मुझे आज भी याद है , शयद आपको भी याद होगा होली से पहले होली दहन को जब घर की ओरते पूजन विधि के लिएतर्यार होती है कैसे छोटे -छोटे बच्चे गले में एक मीठी तोफियो और बिस्कुट के छोटे-छोटे टुकड़े वाली माला पहने अपनी माँके सन्ग चलते जाते है पूजन के बाद वो उन मालाओ को खाते हुए आते है और अगले दिन होली यानी धुलेंडी , धुलेटी , याआधुनिक नाम "रंग" खेला जाता है .
...



रंगों को देख जरा क्या सुंदर समां फेला है
हसीं गुलजार जन्नत रंगीन सारा अहला है
नफरत को प्यार में बदले इसमें कुछ तो बात है
भिगोया "बेदिल" दामन आज भी मैला है

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hello

चिट्ठाजगत

Sahitya Shilpi
रफ़्तार
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घनिष्ट मित्र का तोफा

तोहमतें कई मेरे पीछे मुझपे लगाता है वो
खुलकर बात करने में मग़र शरमाता है वो

कभी सिखाया करता था भले-बुरे का भेद जो
आज खुद ही बुराई का शहंशाह कहलाता है वो

फाँस भी कोई अगर उसे कभी चुभ जाती थी
रोता था मेरे पहलू में, आज मुझे रुलाता है वो

मसलसल जलता रहा लौ बनके जिसके लिए
देखकर कर भी घाव मेरे पीठ दिखाता है वो

पढ़-पढ़कर आँखों में ख़्वाब पूरे किए थे जिसके
एक प्यार की हकीकत पे फूल देके बहलाता है वो


--अमित के सागर


अजीब शख्स था कैसा मिजाज़ रखता था
साथ रह कर भी इख्तिलाफ रखता था

मैं क्यों न दाद दूँ उसके फन की
मेरे हर सवाल का पहले से जवाब रखता था

वो तो रौशनियों का बसी था मगर
मेरी अँधेरी नगरी का बड़ा ख्याल रखता था

मोहब्बत तो थी उसे किसी और से शायद
हमसे तो यूँ ही हसी मज़ाक रखता था

--अहमद फराज़
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