" यही मंदिर , यही मस्जिद , यही तख्ते मुहम्मद हैं

चले आओ 'बेदिल' यही वादी-ए-जन्नत है "

जिसने हमें बनाया इंसान सदा के लिए

>> मंगलवार, 4 मई 2010

हम भी रखते है रोजे उस खुदा के लिए
जिसने हमें बनाया इंसान सदा के लिए

वफाये,हमारी मुहब्बत में खूब है ताल्लुक
नही करते हम भी इश्क़ अदा के लिए

अपने महबूब के पास हैं तो है जान मे जान
जुदाई हरगीस ना देना नसीब खुदा के लिए

दीपक "बेदिल"
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Ham bhi rakhte hai roje us khuda ke liye
jisne hame banaya insaan sada ke liye

hamari wafaye,hamari mohhobbat me khub hai taalluk
nahi karte ham bhi ishq aada ke liye

apne mahboob ke paas hain to hai jaan me jaan
judaai hargis naa dena nasib khuda ke लिए

Deepak "bedil"

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hello

चिट्ठाजगत

Sahitya Shilpi
रफ़्तार
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घनिष्ट मित्र का तोफा

तोहमतें कई मेरे पीछे मुझपे लगाता है वो
खुलकर बात करने में मग़र शरमाता है वो

कभी सिखाया करता था भले-बुरे का भेद जो
आज खुद ही बुराई का शहंशाह कहलाता है वो

फाँस भी कोई अगर उसे कभी चुभ जाती थी
रोता था मेरे पहलू में, आज मुझे रुलाता है वो

मसलसल जलता रहा लौ बनके जिसके लिए
देखकर कर भी घाव मेरे पीठ दिखाता है वो

पढ़-पढ़कर आँखों में ख़्वाब पूरे किए थे जिसके
एक प्यार की हकीकत पे फूल देके बहलाता है वो


--अमित के सागर


अजीब शख्स था कैसा मिजाज़ रखता था
साथ रह कर भी इख्तिलाफ रखता था

मैं क्यों न दाद दूँ उसके फन की
मेरे हर सवाल का पहले से जवाब रखता था

वो तो रौशनियों का बसी था मगर
मेरी अँधेरी नगरी का बड़ा ख्याल रखता था

मोहब्बत तो थी उसे किसी और से शायद
हमसे तो यूँ ही हसी मज़ाक रखता था

--अहमद फराज़
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