चलो बरसो पहले कयामत.......................ग़जल
>> मंगलवार, 7 अप्रैल 2009
चलो बरसो पहले हुई क़यामत को देखते है
खोफजदा रात की दोर-ए-शिकायत को देखते है
मुत्फरिक अशर तो यु है तकरीर हमारी यारो
परदेह में छिपी उसी नफरत को देखते है
वीरान-ओ-उजाड़ यहाँ आब-ओ-हवा हुई है ऐसी
लुटी हुई जिन्दगी में उस मुहब्बत को देखते है
यु तो ना जाएगे गंज-ए-शहीदान वतन से परे
गाहे - बा - गाहे दुश्मन की जराफत को देखते है
महफ़िल महबूब की होती आब-ए-रवां जैसी अल्हा
इसमें डूब कर "बेदिल" अपनी सूरत को देखते है
शब्द----
1-मुत्फरिक अशर = फूटकर दोहा
2-तकरीर = बात, भाषण
3-गंज-ए-शहीदान = शहीदों के दफन होने वाली जगह
4-जराफत = कला
5-आब-ए-रवां = बहता पानी
दीपक पंवार "बेदिल"
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