मेरी इन गज़लों को उठा कर फेकना
>> शनिवार, 13 जून 2009
मेरी इन गज़लों को उठा कर संभाल कर फेकना
महफ़िल-ए-यार में ना दिल उछाल कर फेकना
इश्क-ओ- आबरू-ओ- शर्म-ओ- हया गजब है
नफरत को ए साहब दिल से निकाल कर फेकना
हस्ती जबतलक इस मैदान-ए-गुलसिता में मेरी
रहगी फिदरत यारो इश्क को बेहाल कर फेकना
ये हुआ की जाट साहब सिर्फ चंद बाते कह पाए
की यारो को मोहोबत में माला-माल कर फेकना
"बेदिल" के कारनामे दिल्ली में मशहूर हो चले है
मुझे दिल से फेकना दोस्त मगर ख्याल कर फेकना
14-06-2009......03:30 am
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hello