होरी खेलन जाऊ...............''बेदिल''
>> गुरुवार, 12 मार्च 2009
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भीगी , भीगी , भीगी रे चुनरिया मोरी
पकड़ी गई रे चोरी कन्हईया तोरी
जटा जाल महाकाल विकराल
रस गाल मधुबाल ससुराल
आज ना चलन देऊ सीना जोरी
भीगी , भीगी , भीगी रे चुनरिया मोरी
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छान, बान, मान करो रसपान
जान,आन बड़ा देहु है दान
फास,सास,मॉस कभी दुःख देहु ना मोई
आख, जाच, राच पढ़े जो माने कोई
जडी जटिल प्रेम की आज पिऊ तोरी
भीगी , भीगी , भीगी रे चुनरिया मोरी
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आग, राग, फाग, साग आलोकिक गहने
प्रकर्ति प्रेम अनूप है पढ़े तो लगे महने
रहन, सहन, कहन, सोचो जरा को
उठान सो फायदा नहीं मरा को
गुरु इक्छा ईश्वर है कैसे जाऊ छोरी
भीगी , भीगी , भीगी रे चुनरिया मोरी
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काम, क्रोध, मद, लोभ, ना देखे ईश्वर कोई
जात, आत, मात, रात, कभी ना भूले कोई
"मान" गुरु सौदंर्य सम्पूर्ण सुलेखा
"बेदिल" चाँद-चादनी कबहु ना भुलेखा
होरी रात भेदी इहु चोरी
भीगी , भीगी , भीगी रे चुनरिया मोरी
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10-03-2009 (7:30pm)
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